Mahashivratri 2024: रामयण के बहुत सारे पात्र ऐसे हैं, जिनके बारे में ज्यादा लोग नहीं जानते हैं. इन्हीं में एक विभीषण की बेटी है, जिसके बारे में रामयण में जिक्र नहीं किया गया है लेकिन कई भाषाओं में लिखी गई रामयाण में उनके बारे में बताया गया है.
विभीषण की बेटी से रावण भी डरता था. विभीषण की बेटी बहुत सुंदर थी, जो एक राक्षसी थी. राक्षस कुल में जन्मी विभीषण की बेटी बहुत बुद्धिमान थीं. वैसे तो रावण बहुत शक्तिशाली था लेकिन वह विभीषण की बेटी से बहुत डरता था. जानिए कौन थी विभीषण की बेटी?
पुरानी कथाओं के अनुसार, विभीषण की बेटी का नाम त्रिजटा था, जिसके हिसाब से वह रावण की भतीजी थी. त्रिजटा की मां का नाम शरमा था. रावण के यहां सभी राक्षसियां माता सीता को रावण से विवाह करने के लिए कहने लगी, तभी त्रिजटा ने अपनी साथी राक्षसियों की फटकार लगाई और माता सीता से मांफी मंगवाई.
विभीषण की बेटी त्रिजटा ने माता सीता और अपनी साथियों को अपने एक सपने के बारे में बताया, जिसमें वह भविष्य देख चुकी थी. त्रिजटा ने कहा कि उसने देखा कि रावण की लंका एक वानर यानी हनुमान जला रहा है. साथ ही भगवान राम माता सीता को बचाने आ रहे हैं. त्रिजटा अपनी साथी राक्षसियों को कहती है कि वे सीता माता को परेशान ना करें और उनकी सेवा करें. त्रिजटा राक्षसियों में से सबसे बड़ी थी, सब उसकी बात मानती थी.
त्रिजटा से डरता था रावण
विभीषण की बेटी त्रिजटा अशोक वाटिका में रहती थीं. वह हथियारों और जादुई क्षमताओं के बारे में जानती थी. त्रिजटा के पास ऐसी दिव्य शक्तियां थी, जिससे वह माता सीता को सभी घटनाओं के बारे में बताती थी. त्रिजटा की दिव्य शक्तियों के बारे में रावण भलीभांति जानता था. इसी वजह से रावण त्रिजटा से डरता था. जो वह बोलती थी, वह हमेशा सच हो जाता था. रावण को इस बात का भी पता था कि त्रिजटा भगवान विष्णु से प्रेम करती थी और उनकी पूजा करती थी.
काशी में है त्रिजटा राक्षसी का मंदिर
कहते हैं कि माता सीता ने त्रिजटा को वरदान दिया था कि कार्तिक पूर्णिमा के अगले दिन उसे देवी के रूप में पूजा जाएगा. रावण के वध के बाद जब माता सीता वापस आई तो उन्होंने आते हुए त्रिजटा को काशी में देवी के रूप में विराजमान होने का वरदान दिया, तभी से वहां त्रिजटा की पूजा होती है. ऐसे में कार्तिक पूर्णिमा के अगले दिन त्रिजटा राक्षसी की पूजा की जाती है. जो लोग त्रिजटा की पूजा करते हैं, उनकी माता हमेशा रक्षा करती है. यहां भक्तों की भारी भीड़ लगती है और उन्हें भक्त मूली-बैंगन का भोग लगाते हैं.
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