राजस्थान बीजेपी में बड़ा बदलाव: मदन राठौड़ दूसरी बार प्रदेश अध्यक्ष, ओबीसी वोट बैंक पर फोकस

राजस्थान : की राजनीति में बड़ा बदलाव करते हुए भाजपा ने मदन राठौड़ को सात महीने में दूसरी बार प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है। उनकी यह नियुक्ति राज्य में ओबीसी वोट बैंक को मजबूत करने और सत्ता-संगठन के बीच संतुलन साधने की रणनीति के रूप में देखी जा रही है।

प्रदेश अध्यक्ष पद पर मदन राठौड़ की दोबारा नियुक्ति

राज्यसभा सांसद मदन राठौड़ को दूसरी बार राजस्थान भाजपा की कमान सौंपी गई है। उनके नाम की घोषणा सीएम भजनलाल शर्मा, पूर्व सीएम वसुंधरा राजे समेत कई वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी में की गई। इस दौरान पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने भाजपा में एकता बनाए रखने के लिए "एकजुट, नो गुट, एक मुख" का नारा दिया।

चुनाव प्रभारी और गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने मदन राठौड़ के नाम का औपचारिक ऐलान किया। दिलचस्प बात यह है कि प्रदेशाध्यक्ष पद के चुनाव में मदन राठौड़ के अलावा किसी भी अन्य नेता ने नामांकन नहीं भरा था, जिससे पहले ही तय हो गया था कि वे दोबारा इस पद पर आसीन होंगे।

मदन राठौड़ का राजनीतिक सफर

मदन राठौड़ ने जनसंघ से लेकर भाजपा तक अपनी राजनीतिक यात्रा पूरी की है। 26 जुलाई 2024 को पहली बार उन्हें प्रदेशाध्यक्ष नियुक्त किया गया था और महज सात महीने बाद भाजपा ने उन्हें फिर से यह जिम्मेदारी दी है।

राठौड़ के नाम की चर्चा संगठन की बैठकों में पहले से ही थी। प्रदेश प्रभारी राधा मोहन दास अग्रवाल भी इस बात के संकेत दे चुके थे कि प्रदेशाध्यक्ष पद पर मदन राठौड़ ही निर्वाचित होंगे।

भाजपा का ओबीसी कार्ड और जातीय समीकरण

राजस्थान में ओबीसी मतदाता चुनावी नतीजों में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। भाजपा ने मदन राठौड़ को दोबारा अध्यक्ष बनाकर अपने ओबीसी वोट बैंक को मजबूत करने की कोशिश की है। घांची समुदाय से ताल्लुक रखने वाले राठौड़ को इस पद पर बनाए रखकर पार्टी ने जातीय समीकरण साधने की कोशिश की है।

राजस्थान में 50% से अधिक वोटर ओबीसी समुदाय से आते हैं, जिसमें कई जातियां शामिल हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में भी ओबीसी वोटर्स ने अहम भूमिका निभाई थी। ऐसे में भाजपा इस वोट बैंक को साधने के लिए पूरी रणनीति के तहत आगे बढ़ रही है।

सत्ता-संगठन में संतुलन साधने की रणनीति

भाजपा ने सत्ता और संगठन के बीच समन्वय बनाने के लिए मदन राठौड़ को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। जहां सरकार की कमान ब्राह्मण समुदाय से आने वाले मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के हाथ में है, वहीं संगठन की बागडोर ओबीसी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले मदन राठौड़ को सौंपी गई है।

राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, यह नियुक्ति जातीय संतुलन बनाने की एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है, जिससे भाजपा आगामी चुनावों में अपनी स्थिति को और मजबूत कर सके।

वसुंधरा राजे को साधने की कोशिश

मदन राठौड़ को पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का करीबी माना जाता है। भाजपा नेतृत्व ने उन्हें फिर से प्रदेश अध्यक्ष बनाकर वसुंधरा गुट को भी साधने की कोशिश की है।

2018 में वसुंधरा सरकार के दौरान मदन राठौड़ ने भाजपा के उप मुख्य सचेतक की जिम्मेदारी संभाली थी। 2023 विधानसभा चुनाव में भाजपा ने उनका टिकट काट दिया था, जिसके बाद उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ने की तैयारी कर ली थी, लेकिन नेतृत्व के कहने पर उन्होंने अपना नाम वापस ले लिया था। इसके बाद उन्हें राज्यसभा भेजा गया और अब फिर से प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई है।

उपचुनाव में शानदार प्रदर्शन बना दोबारा नियुक्ति की वजह

मदन राठौड़ के नेतृत्व में भाजपा ने हाल ही में हुए उपचुनावों में शानदार प्रदर्शन किया। राजस्थान की 7 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा ने 5 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इसमें सलूंबर, रामगढ़ और झुंझुनू सीटों पर जीत के अलावा कांग्रेस के गढ़ माने जाने वाली देवली-उनियारा और आरएलपी की खींवसर सीट पर भी भाजपा ने कब्जा जमाया।

इसी प्रदर्शन के चलते हाईकमान ने मदन राठौड़ को फिर से प्रदेश अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दी है, ताकि आने वाले चुनावों में पार्टी को और मजबूती मिल सके।

निष्कर्ष

मदन राठौड़ की दोबारा नियुक्ति भाजपा की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है, जिसके जरिए वह ओबीसी वोट बैंक को मजबूत करने, सत्ता और संगठन में संतुलन बनाने और वसुंधरा राजे गुट को साधने की कोशिश कर रही है। आगामी लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए यह फैसला पार्टी के लिए बेहद अहम साबित हो सकता है।

Written By

Monika Sharma

Desk Reporter

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