राजस्थान सरकार ने अदालत में बताया कि मेडिकल एजुकेशन की गुणवत्ता बनाए रखने और विशेषज्ञ डॉक्टर तैयार करने के लिए राज्य सरकार प्रत्येक पीजी छात्र पर बड़ी राशि खर्च करती है। इसके बदले में 2 साल तक सरकारी अस्पताल में सेवा देना अनिवार्य किया गया है। लेकिन कई डॉक्टर सेवा देने से इनकार कर निजी प्रैक्टिस या विदेश चले जाते हैं।
सरकार के नियमों के मुताबिक, पीजी करने वाले डॉक्टरों को कोर्स के बाद सीनियर रेजिडेंट (एसआर) के रूप में दो साल की सेवा देनी होती है। लेकिन बड़ी संख्या में डॉक्टर्स कोर्स खत्म होते ही एसआर शिप से मना कर देते हैं, जिससे सरकारी अस्पतालों में विशेषज्ञों की भारी कमी बनी रहती है।
हाईकोर्ट ने इस रुख को गंभीर मानते हुए कहा कि यदि सरकार इतना पैसा खर्च कर रही है, तो डॉक्टर्स की सामाजिक और कानूनी जिम्मेदारी है कि वे सेवा दें। कोर्ट ने मामले में विस्तृत जवाब मांगा है और यह स्पष्ट करने को कहा है कि सेवा से इनकार करने वालों पर क्या कानूनी कार्रवाई की जा रही है।
सरकार ने यह भी बताया कि भविष्य में कोर्स शुरू करते समय ही डॉक्टरों से बॉन्ड एग्रीमेंट सख्ती से लिया जाएगा और यदि सेवा नहीं दी गई तो राशि वसूली या पंजीयन रद्द करने की प्रक्रिया अपनाई जाएगी। मेडिकल काउंसिल और हेल्थ डिपार्टमेंट को इस दिशा में स्पष्ट दिशा-निर्देश देने के लिए योजना बनाई जा रही है।
सरकार और हाईकोर्ट दोनों ने इस मुद्दे को जनहित से जुड़ा मानते हुए सख्त रुख अपनाया है। यह देखा जाना बाकी है कि आने वाले दिनों में इस पर व्यवहारिक कार्रवाई होती है या नहीं। अगर नियम सख्ती से लागू होते हैं, तो राज्य के सरकारी अस्पतालों को विशेषज्ञ सेवाओं की बड़ी राहत मिल सकती है।
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